Friday, December 28, 2012

आँखें कभी झूठ नहीं बोलती


हाँ, ये सच है के मैं झूठ बोलता हूँ 
पर ये झूठ है के मैं सच नहीं बोलता 
मैंने कुछ नहीं बताया क्योंकि किसी ने कुछ पुछा ही नहीं 
और जब पुछा भी तो कैसे?
सबको वो ही चाहिए जो वो सुनना चाहते हैं 
तो मैं क्यों   हाल-ए -दिल  खोलूँ किसी के  आगे?

और मेरा पूछना उनको नहीं भाता 
शायद उनको  भी पता है 
जो वो बोलेंगे वो मुझे पसंद न  होगा !!

उन्हें इस बात का इल्म है, के मैं गलत नहीं हूँ
पर सही तो कोई एक ही हो सकता है ना?
इश्क पूरा ना सही, अधूरा भी नहीं है इश्क मेरा लेकिन.....

हाँ, ये सच है के मैं झूठा हूँ 
पर यह झूठ है के मैं सच नहीं बोलता 
आँखें कभी झूठ नहीं बोलती.......

ishQ
29th December 2012

Thursday, December 20, 2012

बेक़ाबू होते होते


मुस्कुराता रहा के आंसू ना निकले बेसबब 
उनके दीदार पे ख़ुशी के आंसू निकल ही गए 

सोच के रखा था के रूठे  रहेंगे के वो मनाएं 
वो पास आए तो आगोश फिसल ही गए 

कहते थे न बदलेंगे ज़माने की तरह 
वक़्त बदला और उनके अंदाज़ बदल ही गए 

इश्क़ का सुरूर और चाहत का जूनून 
बेक़ाबू होते होते वो संभल ही गए 

ishQ
21st December 2012

Friday, December 14, 2012

अलविदा


ka "alvida"

जाते जाते वो गया नहीं
रुकते रुकते पर रुका भी नहीं

दिल टूट गया इक इशारे पे
आह उठी पर दुखा भी नहीं

उठ के यूँ गया अचानक महफ़िल से
अलविदा कर सका भी नहीं

Q

14th December 2012

Monday, December 03, 2012

बेकाबू इश्क




सर्द रातें
गर्म यादें
सूखे आरज़ू
नर्म वादे

हल्दी सुबहें
सुर्ख शाम
भीगी बूँदें
बहता नाम

रूकती  राहें
दौड़ते  मंजिल
बेकाबू "इश्क"
मासूम दिल


Q
4th December 2012

Tuesday, November 27, 2012

"महफ़िल-ए-ना-मंज़ूर"



जब भी पूछा  गया, वही  ठिकाना ही रहा 
सुरूर हो न हो, गुरूर-ए-मैखाना ही रहा 

कोई भी हो, अनजान चेहरा या माज़ी का मिराज 
जिस से भी मिले मिजाज़ आशिकाना ही रहा 

हाँ  ये सच है के अब हम साथ नहीं 
पर हम मिले भी थे, ये अफसाना ही रहा 

कुछ तो चाहिए महफ़िल-ए-ना-मंज़ूर का सबब 
हर बार की तरह इस शाम भी तेरा बहाना ही रहा 

उम्र भर "इश्क़"  की बातों का भरोसा न किया
हर इक बात पे कसमों का खाना ही रहा 


ishQ
28th November 2012

Friday, November 16, 2012

मुझसे पूछो मैं खुश क्यों हूँ?



मुझसे पूछो मैं खुश क्यों हूँ?

मैं खुश हूँ क्योंकि मुझे पता है मुझे क्या खुश कर सकता है 
मैं खुश हूँ क्योंकि मुझे पता है ख़ुशी क्या है 
मैं खुश हूँ क्योंकि मुझे मेरा दायरा मालूम है 
मैं खुश हूँ क्योंकि सुकून ही मेरा जूनून है 

मुझे ख़ुशी ढूढनी  नहीं पड़ती 
मुझे ख़ुशी खोने का डर नहीं 
कभी किसी दिन अकेला पड़ भी जाऊं
मायूस होता मैं मगर नहीं 

मैं कभी इतनी तेज़ नहीं भागता 
की ख़ुशी पीछे छूट जाए 
कभी ऐसा न हो 
खुद अपनी सोच रूठ जाए 
मैं हूँ, मेरा वजूद है, मेरी सोच है 
ख़ुशी मुझे ढूंढती है, ये मेरी खोज है 

मुझसे पूछो मैं खुश क्यों हूँ?

मैं खुश हूँ क्योंकि  मैं सोच सकता हूँ 
मैं खुश हूँ क्योंकि मैं खुद से पूछ सकता हूँ 
मैं खुश हूँ क्योंकि  मैं खुद को रोक सकता हूँ 
मैं खुश हूँ क्योंकि मैं खुश रह सकता हूँ 

मैं ख़ुशी तोलता  नहीं, मैं ख़ुशी नापता नहीं 
मैं दूसरों की थोड़ा  सुनता हूँ और उससे भी कम कहता हूँ 
मुझे दुसरे की ख़ुशी का गम नहीं
इसलिए शायद थोड़ा  ज़्यादा   खुश रहता हूँ 


Friday, November 09, 2012

अच्छा नहीं लगता




कोई बात हो, झूठा या सच्चा नहीं लगता
पर जब कोई बात न हो, तो अच्छा नहीं लगता 


सुकून -ऐ-राह, खूबसूरत वादियाँ
पर उसका साथ न हो, तो अच्छा नहीं लगता

बादल गरजे, दिल तडपे, अरमाँ भीग उठे
उसके बाद बरसात न हो, तो अच्छा नहीं लगता

दिन भर की भीढ़ के बाद शाम का सन्नाटा
और हाथों मे हाथ न हो, तो अच्छा नहीं लगता

सारे रिश्ते छोड़ के, सारे एहसास भूल कर भी अगर
'इश्क' से मुलाक़ात न हो, तो अच्छा नहीं लगता


ishQ


9th November 2012

Friday, November 02, 2012

भूल पाता नहीं है





यूँ   तो   वो   कुछ   बताता   नहीं   है  
पर   चाह   के   वो   छुपाता   नहीं   है  


ऐसा   नहीं   है  के   हम   मिलते   नहीं   अब  
पर   अब   वो    आँखें   मिलाता   नहीं   है  


दिन   की   रौशनी   मे   ख्वाब   अब   आते   नहीं   है  
वरना   इक   रात   न   गुज़री   जब   वो   सताता   नहीं   है  


कई  दिन   हुए   मैं    किसी   से   रूठा   नहीं   हूँ 
कई   दिनों   से  मुझे   कोई   मनाता   नहीं   है  


याद   नहीं   कितने   अरसे   हुए   उसके   रुख्सत   को 
पर   वो  हादसा   "इश्क"   भूल   पाता   नहीं   है 


ishQ
2nd November 2012

Monday, October 29, 2012

किरदार




खुलते   बंद  होते   ऐसे   मेरे  अबसार   है  
जैसे  उसकी   रुख-ए-रौशनी   खुर्शीद   पे   सवार     है  

खामोश   मुस्कुराट   लिए   सुलझाना   वो   ज़ोलीदा   जुल्फें  
पर   बोलती   आँखें   खोलती   सारे   असरार   हैं  

ये   जो   छायी   है   खुमार-ए-परस्तिश   मुझ   पे  
इसकी   हालत   का   दिल   खुद   ही    गुनाहगार   है  

पल  पल   बदलता   है   मौसम   उसके   इशारे   पे  
हर   आहट   पे   बदलता   धड़कनों   का   शुमार   है 

ताल्लुक़   हो   रहा   है   इक   नए   खुद   से   आज   कल 
“इश्क” ने  खुद  ही  बदला   अपना   किरदार   है 



- ishQ
29th October 2012

अबसार - Eyes
खुर्शीद  - Sun
ज़ोलीदा - Entangled
खुमार-ए-परस्तिश - lost in worship
शुमार - count

Thursday, October 25, 2012

फिर इक बार रोका दिल को हमने




इक   उम्र   हो   गयी   थी  उनको  देखे  हुए 
इक  नज़र  पड़ी  और  फिर  इक  हूक  सी  उठी 
वक़्त  गुज़र  गया  था  पर  वो  लम्हा  रुका  सा  था 
फिर  इक  बार   रोका  दिल  को  हमने 

महफ़िल  मे  नज़र   बचाते  हुए 
अचानक  नज़र  मिली  दुर्र  जाते  हुए 
जाने  पहले  कौन  मुस्कुराया 
फिर  इक  बार   रोका  दिल  को  हमने 

दो  कदम  वो  चले  उस  तरफ 
कुछ  फासले  कम   हुए  इस  तरफ 
अलफ़ाज़  लबों  पे  आने  को  थे 
फिर  इक  बार   रोका  दिल  को  हमने 

अब  कहूं, तब  कहूं 
क्या  कहूं  जब  कहूं 
आँखें  सुना  रही  थी   “इश्क” की  दास्तान 
फिर  इक  बार   रोका  दिल  को  हमने 

दिल  ने  कहा  न  जा  और  करीब  अब 
दिल  ने  कहा  लगा  कोई  तरकीब  अब 
दिल  ने  कहा  अब  न  रुक  पाएगा 
फिर  इक  बार   रोका  दिल  को  हमने 


ishQ26th October 2012

Tuesday, October 16, 2012

कोई और ऐसा और कहाँ है




मैंने उसे  कभी  देखा  ही  नहीं  तस्सली  से 
उसकी  अब  उम्र  हो  चली  है  शायद....

रात  मैं  सो  गया  तो  भी  जगी  रहती  थी 
और  भागता  हुआ  ही  पाया  सुबह  आँखें  जो  मैंने  खोली  है....

हर दिन, वक़्त  कम  है इसलिए  खुद  भूखी   रह  के 
घर  पे  तैयार बाकी सबका  खाना  किया 
अपने मैले कपड़ो  को बेपरवाह किये 
हर एक को नए कपड़ो मे रवाना किया

जब हर किसी ने मना कर दिया
तब आखिर मे उसकी साड़ी के कोने से रुपये निकले
और मेरी हथेली मे देते हुए हर बार कहा 
ये  आखरी  बार  है.....

उसका चेहरा आज तक बदला नहीं, वैसी  ही  दिखती  है  जैसी  मुझे  हमेशा  से  याद  है
इसलिए कभी लगा ही नहीं, के  दरअसल वो  अब  कमज़ोर सी  हो  गयी  है 
अब  वो  भाग नहीं  पाती.....
आँखों  पे  चश्मा  लग  गया  है, आवाज़  हलकी  हो  उठी  है
अब वो रात भर जाग नहीं पाती....

हाल  ही  में  मैंने  उससे  कहा भी, "माँ, अब  तो  थोड़ा  आराम  कर  लो"
तो  वो  बोली, "माँ हूँ; तुम लोगों को आराम करते देख मुझे आराम मिलता है"
बोली, आज कल थोड़ा जल्दी थक ज़रूर जाती हूँ
पर मैं जानती हूँ, मेरे बच्चे मुझे संभाल लेंगे

सच तो ये है के आज तक वो मुझे संभाल रही है
आज तक मुझे बच्चे की तरह ही पाल रही है

कोई और ऐसा और कहाँ है
मेरी दुनिया का दूसरा नाम ही माँ है

ishQ
16th Oct 2012

Sunday, October 07, 2012

मुद्दतों तक




यूँ तो गुफ्तगू होती रही मुद्दतों तक
उनकी जुस्तजू होती रही मुद्दतों तक

मिलते भी रहे, बातें भी हुई, हंस के हाथ थामा भी था शायद 
कुछ भी न हुआ, आरज़ू होती रही मुद्दतों तक

तितलियाँ बैठी रहीं, परों के रंग उड़ गए हवाओं में
रुमाल मिला उनका, खुशबू होती रही मुद्दतों तक 

ज़िक्र आया था इक रकीब का आखरी मुलाक़ात में
हालात-ए-दिल काबू होती रही मुद्दतों तक


ishQ
8th October 2012

Friday, October 05, 2012

फैसला रुक गया


‎-

उधर चलते चलते वो काफिला रुक गया
इधर बेचारा दिल अकेला रुक गया

वो जाते जाते मुस्कुरा गया इस तरह
उस से होते होते गिला रुक गया

जब से किसी को मनाना शुरू किया है
दुनिया से रूठे रहने का सिलसिला रुक गया

मैं अनजाने न जाने क्या कह गया
और 'इश्क' होने का फैसला रुक गया

ish-Q
6th Oct 2012

Friday, September 07, 2012

हुनर



सोच धुंआ और अलफ़ाज़ पानी है 
खामोश दिल की भी क्या नादानी है 

इक अजीब सी कशिश पायी अजनबी मे 
थोड़ी रूहानी थोड़ी जिस्मानी है 

धुंधली होती जाए हैं रुख-ए-रोशन अब तो 
पर आवाज़ की सिलवटें जानी पहचानी है 

हम मे हुनर था कहाँ कोई ऐसा 
लफ्ज़ , शेर, शायरी सब इश्क की मेहेरबानी है 



ishQ

7th September 2012

Sunday, September 02, 2012

आदाब


कोई   मांगे   तो   दे   देना   अपनी   हैसियत   के   हिसाब   से  
आखरी   वक़्त   दौलत   न   बचा   पाओगे   मौत    के   ताब   से  



रुख   कर   लेना   हमारी   महफ़िल   का   भी   एक   बार  
थक   जाओ   गर   कभी   जो   अपने   इन्क़लाब   से  


मिलते   ही   दोस्तों   से   गले   मिलना   न   छोड़ना
न   जाने   किस   बात   पे   दुश्मनी   हो   जाए   जनाब   से  


इब्तेदा -ए -इश्क   मे   इंतज़ार   न   हो   कभी  
हर   रिश्ते   की   शुरुआत   होती   है   इक   आदाब   से  



Q

3rd September 2012

Wednesday, August 29, 2012

अब ऐसे ही है जीना शायद



अब   ऐसे  ही   है   जीना   शायद
दिल   के   बगैर   होगा  सीना  शायद 


नाम  होठों   पे   आते   ही  पैमाना  चूम  लेना
पड़ेगा   अब   यू  ही   पीना   शायद  

धुंधला  चेहरा, फींकी आवाज़
डूब   रहा   है   इश्क   का   सफीना   शायद  


पा  के   खो   देना   और   खो   के   फिर   ढूढना
अब   ऐसे   ही   है   जीना   शायद  



ishQ

30th August 2012

Sunday, August 26, 2012

बे-सुध रातें



उनके   मिजाज़   कुछ   बदलने   लगे   हैं
ज़ुल्फ़   बे-परवाह   पर   पाँव   संभलने   लगे   हैं

चाहने   वालों   का   ये    आलम   है
उनके   नाम   पे   ही   दिल   बेहेलने   लगे   हैं

इक   ज़माना   था   बे-सुध   होती   थी   रातें
अब   पलकों   मे   सपने   पलने   लगे   हैं

हमे   भी   शायद   हो   गया   है   "इश्क"
ज़िक्र   कोई   करे   उनका   तो    जलने   लगे  हैं

ishQ
26th August 2012

Saturday, August 25, 2012

इक दिल ही नहीं


होशसमझनीयत   हर   चीज़   इश्क   मे   खो   बैठे
इक   दिल   ही   नहीं   जो   साथ   निभाता  नहीं

इक   मेरा   सनम , यादों   से   जाता   नही
इक   उनका  कासिदकभी  वक़्त   पे   आता   नहीं

इल्म   हो   जाता   है   मुझे   आवाज़   के   लहजे   से
चाहे   वो   लफ़्ज़ों   मे   कुछ   भी   बताता   नहीं

Thursday, August 23, 2012

वारदात



आज नए मौसम की शुरुआत हो गयी 
इक हसीन अजनबी से बात हो गयी 

घर से निकले थे सूखी सोच मे 
चार कदम पे ही बरसात हो गयी 

चंद लम्हों की गुफ्तगू मे ही 
मानो आईने के सामने खुद से मुलाक़ात हो गयी 

कुछ वो मुस्कुराए कुछ इश्क ने हौसला लिया 
रोकते थमते इक मासूम वारदात हो गयी 

ishQ
24th Aug 2012

Thursday, August 02, 2012

शाद चेहरे


सुना   है   मेरा  इक   रकीब   बन   गया   है
सुना   है   मुझे   वो   भुलाने   लगे   हैं

मुझे   इल्म   था   तन्हाईओं   का   हमेशा
पर   अब  खामोशियाँ   भी   सताने    लगे   हैं

चलो   अब   तो  घर   का   रुख  किया   जाए
यहाँ   शाद   चेहरे   नज़र  आने   लगे   हैं

मैं   अपनों   को   भूल   जाने   लगा   हूँ
और   भूले   हुए  शक्स   याद   आने   लगे   हैं


ishQ
Aug 2012

Wednesday, August 01, 2012

इश्तिहार


उठी  रगों   मे  आज  फिर  कैसी  रफ़्तार  है
खुद   लहू  बन  गयी   काटती तलवार   है

होठों   पे  इक   मुख़्तसर   सी  मुस्कान   आती   है  नज़र
और   आँखों   मे   रुका  हुआ  अश्क-ए -इसरार   है

यूँ   फिर आने का  कोई   तो   सबब   होगा   ज़रूर
तुझे   हो   न   हो   तेरे   जाने   का   मुझे   शुमार   है

ज़बा   पे  आ   के   रुकी   इक   बात   फिर   कोई   आज
इश्क  अपने   माजी   का   खुद   ही  इश्तिहार   है


ishQ
July 2012

Monday, July 23, 2012

इश्क हो गया




हलकी  बारिश  सा  आया  और  गया 
उसका  अक्स  मेरी  रूह  भिगो  गया  


अब  तक  नम  है  आस्तीन  मेरी 
वो  रात  मेरे  काँधे  पे  रो  गया 


यूँ  तो  दर्द  उठा  नहीं  है  बरसों  में 
ज़ख्म  ताज़ा  है  पर  निशाँ  खो  गया 


मुलाक़ात, गुफ्तगू, हँसना  रोना  हो  गया 
इश्क  हो  गया  पर  शक्स  खो  गया 


Q
24th July 2012

Thursday, July 12, 2012

चमकती तलवार



तेरा  ख़याल  दिल  को  महका  गया  ऐसे 
पहली  बारिश   की   खुशबू   हो   जैसे  

रूह   रह   गयी   प्यासी   फिर   से  
अर्ज़   को   बादलों   की   जुस्तजू   हो   जैसे  

खाली   घर , अँधेरा   दिन   और   गूंजता   है   सन्नाटा  
पानी   नहीं   खिड़की   पे   गिरते   आंसू   हो   जैसे  

चमकती  तलवार   सी   पार   हुई   जिस्म-ओ-जिगर से 
रंग   भी   कुछ   यूँ   था   के   लहू   हो   जैसे  


ishQ
13th July 2012

Sunday, July 08, 2012

खबर......







य़ू तो है दोस्ती हममे बड़ी अच्छी
निभती भी है ग़म मे बड़ी अच्छी 




बस छोटी-छोटी खुशियों की कमी है वरना 
कट रही है ज़िन्दगी कम मे बड़ी अच्छी 




दिल चोट खाता है हर बार खासियत देख कर 
जो है जलन और ठंडक की मरहम मे बड़ी अच्छी 




नहीं आने की खबर हर बार भेजता है 
ये इक बात है मेरे सनम मे बड़ी अच्छी 






ishQ


9th July 2012

Friday, June 15, 2012

मेरा कल






सुबह की पहली किरण ने सहलाया मुझे 
पहाड़ों की ओस-सिली पख्दंदियों ने बुलाया मुझे 
सर्दियां दस्तक दे कर दरवाज़े पे संभल रही थी 
सूर्ख ठंडी हवा मेरे साथ चल रही थी


कुदरत की इतनी ज़ीनत है के चुभता है दिल 
पर अब यहाँ रुकना है मुश्किल 
कुछ इकरार करने थे, कुछ काम थे बाकी 
पर सूख गयी सुराही, रूठ गया मेरा साकी 


कशमकश है आज सर्द हवा और माजी की बारिश मे 
इजाज़त नहीं मुझे रोने की भी इस दिल की साजिश मे


दिल के किसी कोने मे ही रहने दिये सारे ज़ख्म 
सूखने छोड़ दिये हैं पुराने आब-ए-चश्म 
निकल आया हूँ उस दर्द की दलदल से 
आज मुलाक़ात होगी मेरी मेरे नए कल से


ishQ

Monday, June 11, 2012

इश्क्ज़ादे



हमको सुकून, तुमको यकीन आया नहीं 
तुमने पूछा नहीं, हमने बताया नहीं 


किसी को हमसे शिकायत है आज कल 
न जाने क्यों कोई दावा उठाया नहीं ?


उनको फुर्सत है ज़माने भर से गुफ्तगू की 
बस हमारा ही ख़याल आया नहीं 


साक़ी को गिला रहा हमने उठा लिया पैमाना 
हमे रंजिश रही उसने पिलाया नहीं 


इतने भी नादान नहीं तुम, 'इश्क्ज़ादे" 
पर न वो समझे, और तुमने भी समझाया नहीं




ishQ


11th June 2012

Tuesday, May 01, 2012

ख़ता


वो   इक   कसम   मैं   लूं   या   तू   ले
वो   इक   बार   मैं   चूम   लूं   या   तू   ले


किसकी   तड़प   ज्यादा   किसका   जूनून   हावी   है
या  तो   मैं   कर   मालूम   लूं   या   तू    ले


सोचता  हूँ  कोई   ख़ता  होने   से   पहले   ‘इश्क’
रोक   अपना   दिल -ए-मजलूम   लूं   या   तू   ले



ishQ

1st May 2012

Saturday, April 28, 2012

पनाह



तुम   तक   पहुँचने   की   कोई   राह   तो   होगी
साथ   मिले   न   मिले    तेरी   पनाह   तो   होगी


बरसो   तलक   मुलाक़ात   हो   न   सही
जब   भी   मिलेंगे   वही   चाह   तो   होगी


दिल   के   ज़ख्म   न   दिखते   हैं   न   दिखाता   है   कोई
बदन   छूते ही   निकलती   आह   तो   होगी


यह  तो   कुदरत   का   घूमता   आईना   है   ‘इश्क’
उजाले  का   मजमा   फिर   तनहा   रात   सियाह   तो   होगी




ishQ

28th April 2012

Friday, April 20, 2012

दिल्लगी




गिनते  हैं   धडकनों  को
नापते  हैं   गहराई   दिल   की

खुद   को   खोने   मे
दिल्लगी   काम   आई   दिल   की


इक  चेहरे  का  नूर  था  दाखिल
खिड़की   खुली   पाई   दिल   की


दिल   के   जाने   के   बाद
बड़ी   याद   आई   दिल   की


मुद्दतों   बाद   उनके   दीदार   पे
महसूस   हुई   अंगड़ाई  दिल   की


‘इश्क’  की   इक  गाठ   ने
उलझनें   सुलझाई   दिल   की


ishQ

21st April 2012




Friday, April 13, 2012

ख़ामोशी



लफ्ज़   कम   पड़   गए   तो    लब   चूम   लिए  
कुछ   बातें   होती   हैं   ख़ामोशी    से  

वो   पल   जो   गुज़ारे   तेरी   आग़ोश   मे  
बातें    होती   है   तेरी   सरगोशी   से  

आज   जो   तेरा   दीदार   हो   गया  
‘इश्क’  हो   गया   अपनी   मदहोशी   से  

तेरी   उम्मीद    है   पर   तेरा   इंतज़ार   नहीं  
इक   सुकून   मिलता   है   इस   सरफरोशी   से  




ishQ

Friday, 13th April 2012

Monday, April 09, 2012

कभी कभी



मुख़्तसर   सी   मुलाक़ात   हो   
जाती   है   कभी   कभी 
और   सालों   की   बात    हो   जाती    है   कभी   कभी  


साँसों   की   गर्मी   और    हाथों   की   सिहरन
इक   नज़र   काम   कर   जाती   है   कभी   कभी  


वो   करीब   आता   है   तो   सांस   रुक   जाती   है
उसके   जाने   पे   भी   रुक  जाती   है   कभी   कभी  


जज़्बात   को   संभालूं   या   ज़माने   की   नज़र  
और   नीयत   भी   डगमगा  जाती   है   कभी   कभी  


बेफिक्री   उसकी   आदत   है   या   अदा   ‘इश्क’
इसकी   फिक्र   हो   जाती   है   कभी   कभी  


ishQ

9th April 2012

Monday, April 02, 2012

फकीर


कभी   ना-दीदा, कभी   फकीर   हूँ   मैं 
आप   अपना   रकीब   तो   कभी   बशीर   हूँ   मैं  


इब्तेदा   पे   न   खबर   थी    इस हिरास   की, और   अब  
मैं   ही   निशाना  , कभी   खुद   ही   तीर   हूँ   मैं 


जाने   किस   तैश   मे   है   आब -ए-आइना,  ऐ   ज़िन्दगी  
टूटे  आइने   मे   मुस्कुराती   तस्वीर   हूँ   मैं 


इस   कशमकश   से   तू   ही   उभार   ‘इश्क’ , जहां 
मैं   ही   हाकिम   और   खुद   ही   ज़ंजीर   हूँ   मैं  




ना-दीदा  – greedy
फकीर   – monk
रकीब   – competitior
बशीर  – messenger of good news
हिरास   – confusion
हाकिम   – judge
आब-ए-आइना  – polish of मिर्रोर



ishQ





Saturday, March 31, 2012

पाजेब





या   तो  दिल   मे   सैलाब   का  हिसाब   रख   लो 
या   चेहरे   पे   बेखुदी   का   नक़ाब   रख   लो 
    

उस   पल   का   इंतज़ार   है   मेरे   जानिब, जब   तुम 
अपने   पैरों   पे  हमारी  उँगलियों   की   पाजेब  रख   लो 


जागे  जागे  चलती   है   रात   साथ   मेरे 
कभी   अपनी   पलकों   पे   मेरा   भी   ख्वाब   रख   लो 


जब   'इश्क'  की   तड़प  हद्द  तक  आ    जाए 
सर्द   आहों   पे   होठों   की   ताब   रख   लो  



ishQ

31st March 2012




Sunday, March 25, 2012

शैतान


वो   ही   हर   ख्वाइश  वो  हर  अरमान  है 
उनकी  हर  अदा  हमारा  इम्तिहान  है 



उसकी  यादों  मे  सुकून  है  मगर  

इज़तेराब  की  लहरों  मे  दिल  हैरान  है 

बे-फ़िकरी   का   आलम   छाया   है   इस   कदर 
होने  को   कोई    ख़ता   बड़ी  नादान   है 

कितना   रोकूँ   सोच   की   दौड़   को 
धोका   देता   हुआ   दिल   शैतान  है  

इब्तेदा   हुई   है   जिस   सफ़र   की  हमसफ़र 
देखो   क्या   इन्तेहाँ-ए-दास्तान   है 

होश   गुम, आँखें   खुली,  सांसे  बे-परवाह 
‘इश्क’  की   शुरुआत  की   ये ही  पहचान   है  


ishQ

25th March 2012


Monday, March 19, 2012

सिलवट



नींद   कच्ची   और   ख्वाब   काँच   के 
दीदार  आधा  और  हिजाब  काँच  के 
 
आखें   खुली   हो   या   बंद   हो   पलकें 
तुम   ही  दिखते  हो  जैसे   हो  बाब  काँच  के 


तेरी  आहट  सुन   के, धड़कन   रुक  गयी 
छनक   उठे  दिल  के   असबाब  काँच  के 

रात   भर  बिस्तर   की   सिलवटों  मे   चुभते   रहे 
सवाल   काँच   के   और   जवाब   काँच   के 

जिस  शाम  हुस्न   की  टक्कर   हुई  ‘इश्क ’ से 
टूट  के  चकनाचूर  हुए  मेरे  जनाब  काँच  के 


ishQ

20th March 2012



Thursday, March 15, 2012

हसीन सवाल




ज़ंजीर  की  तरह  तेरा  ख़याल  आता  है 
रेशमी  धागों  का  जैसे  इक  जाल  आता  है 

कैदी  रहूँ  तेरा  या  तोड़  दूं  बेबसी, दिल  मे 
तुझसे  भी  हसीन  यह  हसीन  सवाल  आता  है 


या  तो  सब  कुछ  ही  चाहिए  या  कुछ  भी  नहीं 
तेरे  जूनून  का  कुछ  य़ू  दिल  मे उबाल आता  है 

बे-सबब  ही   आज कल  या  कोई  वास्ता  है  तुझसे  शायद 
जिधर  देखूं  हर  ज़र्रे  मे  रुख-ए-जमाल  आता  है 

लफ़्ज़ों  की  तासीर  तुमसे   क्या  होगी  'इश्क' 
हुस्न-ओ-अदा  का  जो   उसे  इस्तिमाल  आता  है 


ishQ

15th March 2012


Tuesday, March 13, 2012

पंखुड़ी




उड़ती हुई  आई  इक  पंखुड़ी  कहीं  से 
पलकों  से  ख़्वाबों  को  आवारा  कर  गयी 
सरक  के  रुखसार  से  होठों  पे  जा   अटकी 
इक  नई  शुरुआत  का  इशारा  कर  गयी 

इक  बार  तो  रोका  था  चाहत  के  झोंके  को 
 उसकी  खुशबू  दस्तक  दोबारा  कर गयी 


कोई  यकीन  नहीं  करता  मेरी  बातों  का 
कौन मानेगा  कि तन्हाई  मुझसे किनारा कर गयी 


यूँ  तो  मजमा  रहता  था  खामोशियों  का  यहाँ  
उसकी  हंसी  बे-नूर  ज़िन्दगी  को  सितारा  कर  गयी


साह़िर  की  तरह  उसकी  सादगी  की  छूअन    
'इश्क'  के  चिराग  मे  शरारा  कर  गयी  





ishQ

13th March 2012


Friday, March 09, 2012

गुरूर



ये जो आज हम तेरे दर आये हैं
बिलकुल अनजाने और बे-खबर आये हैं


रोक ली आह, आँसू और तमन्ना दर पे ही
भूल के भी वो अगर आये हैं


इक शक्स, इक पल, इक मुलाक़ात की बदौलत है
रूह पर जितने भी असर आये हैं


रकीब भी रफीक बन गए लेकिन
अज़ीज़ सामने निकल के ना-क़दर आये हैं


रात भर कशमकश थी गुरूर और ‘इश्क’ की
सेहर होते ही हम तेरे घर आये हैं


ishQ
 
9th March 2012
 

Tuesday, March 06, 2012

गुबार


 होठों पे आज कल इक सवाल आता है
आँखों मे बे-रंग सा गुलाल आता है


दर्द की हद्द को इतना पीछे छोड़ आए हैं
न गिला किसी से न दिल मे कोई मलाल आता है


जिस वक़्त ज़हन मे दुनिया का रिवाज़-ओ-हाल आता है
उस वक़्त मुझे बस तेरा ख़याल आता है


दिन और रात की दूरी यूँ सिमट गयी है ‘इश्क’
ख्वाब खुद नींद से अपना गुबार निकाल आता है


ishQ

7th March 2012