सोच धुंआ और अलफ़ाज़ पानी है
खामोश दिल की भी क्या नादानी है
इक अजीब सी कशिश पायी अजनबी मे
थोड़ी रूहानी थोड़ी जिस्मानी है
धुंधली होती जाए हैं रुख-ए-रोशन अब तो
पर आवाज़ की सिलवटें जानी पहचानी है
हम मे हुनर था कहाँ कोई ऐसा
लफ्ज़ , शेर, शायरी सब इश्क की मेहेरबानी है
ishQ
7th September 2012