Monday, August 26, 2013

शरारत

मुद्दतों से कोई ज़ियारत नहीं हुई,
दिल मे भी कोई शरारत नहीं हुई

उमड़े कई एहसास ज़हेन-ओ-जिगर मे मगर,
जला सके जो हमे वो हरारत नहीं हुई

शुरू की थी जो बड़े एलान-ए-जश्न से,
मुक़म्मल अभी तक वो इमारत नहीं हुई

उम्र भर वो आते रहे बज़्म मे तुम्हारी, इश्क़
फिर भी उन्हे तुम्हारी आदत नहीं हुई


Sunday, August 25, 2013

राज़

बेपरवाही से बता देता हूँ तुम्हे सारे राज़ अपने,
और एक तुम हो, मुझसे ही छुपाते हो रंग-ए-अंदाज़ अपने

मैं बद-हाली मे भी बहाल रहता हूँ,
ये देख हो जाते हैं मुझसे, नाराज़ अपने

बुतो पे एतबार का लिहाज़ ज़रूरी है मगर,
मदद-ए-इंसान ही हो दुआ-ओ-नमाज़ अपने

गर तू है, तो तुझको भी इल्म हो रहा होगा,
वक़्त आ रहा है के दिखाओ जलवा-ए-इजाज़ अपने

तुम भी हत्यार ले के घूमते हो, इश्क़,

संभाल के इस्तिमाल करो ये अल्फ़ाज़ अपने

Tuesday, August 06, 2013

इंतेज़ांम

कभी शक़्स, कभी उसकी सोच बेवफा हो जाती है,
और कभी किसी अजनबी से ज़िंदगी आशना हो जाती है

चाँद अपनी कसम तोड़ के छुप जाता है बादलों में,
खामोश अकेली रात रुसवा हो जाती है

इश्क़ की खुशी ना सही, दर्द का ही इंतेज़ांम कर दे,
बेमतलब की ज़िंदगी सज़ा हो जाती है

तुम्हारे रूठने से ये आलम होता है,
इंतेज़ार-ए-दीदार मे साँस खफ़ा हो जाती है

Monday, August 05, 2013

शहर

दिल जैसा कोई शहर नहीं,
धड़कन सी बदलती कोई पहर नहीं....

घर लौटते हुए बरसों में,
वो खुश्बू जानी पहचानी सी,
नयी दुकानों के बीच,
वो टूटी दीवार पुरानी सी,
इस नयी-पुरानी एहसास सी कोई लहर नहीं....

नये बादल भीगो देते हैं पुराने सूखेपन को,
खुश्बू याद ताज़ा कर जाती है,
नये रास्तों पे पहचानी आवाज़ पे,
मुस्कुरा के नज़र ठहर जाती है,
अपनी छत, अपने घर सी कोई सहर नहीं....

गुज़रे दिनों की तरह, उसकी गली से गुज़रते हुए,
कदमों की आहिस्ता चाल कर लेना,
उसके दीदार ना होने पे,
खुद से हज़ार सवाल कर लेना,
उसे खो देने सी कोई कहर नही....

अपनो से जुड़ा, अपनेपन से परे,
दुनियादारी मे जी रहे हैं,
अपने शहर से दूर,
मजबूरी मे जो पी रहे हैं,
इस ज़िंदगी सा कोई ज़हर नही....

दिल जैसा कोई शहर नहीं....

धड़कन सी बदलती कोई पहर नहीं...

Thursday, August 01, 2013

जब भी मिलो

आखें आँखों मे गिरफ्तार रहे, जब भी मिलो
दरमियाँ ना कोई दीवार रहे, जब भी मिलो

ता-उम्र हम मिलते रहें मगर फिर भी
इब्तिद-ए-ताल्लुक़ जैसा ही दिल बेक़रार रहे, जब भी मिलो

सुस्त बोल, हल्की छुअन, उखड़ी साँसें
उंगलियों मे धड़कनो सी रफ़्तार रहे, जब भी मिलो

इश्क़ का जुनून सवार रहे, जब भी मिलो

रुख्सत के बाद भी खुमार रहे, जब भी मिलो