Saturday, December 31, 2011
इक
Sunday, December 11, 2011
बेपरवाह रफ़्तार
Monday, December 05, 2011
नए फ़साने
न चाहते हुए भी गर किसी महफ़िल जाते हैं
उसके ज़िक्र पे मुस्कुरा के हम बिस्मिल जाते हैं
इक उसके दीद की आरज़ू होती है जब कभी
साथ हज़ारों तमन्ना-ओ-एहसास हो शामिल जाते हैं
जब सबके पास इक दिल है महसूस करने को
सब न जाने क्यों किये अफ़सोस-ए-दिल जाते हैं
मिलता हैं मुझसे बरसों की पहचान हो जैसे
उसके असरार-ए-वाकिफ़ से नए फ़साने मिल जाते हैं
करना है इज़हार-ए-दिल कितना कुछ उससे मगर
नज़र मिलती है ”इश्क“ से और लब सिल जाते हैं
बिस्मिल = sacrifice / lover's bait
असरार-ए-वाकिफ़ = mysterious introduction
ishQ
7th December 2011
Saturday, December 03, 2011
सोच थकती नहीं
Wednesday, November 16, 2011
तितली
Friday, November 11, 2011
इल्म--ए-इश्क
Sunday, November 06, 2011
गलत फ़हमी
Saturday, November 05, 2011
ज़िद
नयी मुलाक़ात , मुद्दा पुराना
इक लफ्ज़ के सौ मतलब बन जाना
मेरा जूनून, मेरी तड़प, मेरी तिशनगी
उसकी झलक, उसकी नज़र, उसका मुस्कुराना
गर मुमकिन हो तो ही वादा करो सनम
अंजाम न पहुंचे , उसे कहते हैं फ़साना
जैसे किसी आदत का ज़िद बन जाना
5th November 2011
Wednesday, October 19, 2011
वो
आज मेरी गोद मे लेटी है
दुनिया मे सबसे अनोखी
वो, मेरी बेटी है
कुछ ही दिन हुए वो घर आई
रिश्ता लेकिन है लगता सालों का
लाजवाब, एक ही जवाब है
वो, मेरे सारे सवालो का
अजब उसका खेल
अजब चाल सलोना है
दिन भर उसको सोना
और रात भर उसको रोना है
य़ू तो अब तक कभी कहीं
पूरा एक लफ्ज़ न कह पाई है
आँख भर आती है मगर जब
वो, मेरी गोद मे मुस्कुराई है
आज ही हमे लगता है
कब ये बच्ची बड़ी होगी
पहले घुटनों के बल और फिर
अपने पैरों पे खड़ी होगी
बेवजह नहीं है ये
जो मैं इतना खुश दिख रहा हूँ
वो, मुझसे इक नया रिश्ता जता रहा है
मैं बस अपनी आप बीती लिख रहा हूँ
उसके गोद म़े आते ही मैंने
हर ख़ुशी सीने म़े समेटी है
सबसे अलग, सबसे अनोखी
वो, मेरी बेटी है
- ishQ
20th October 2011
Saturday, October 15, 2011
निशाना
मैं आ तो जाता तेरे बुलाने पर
तू खुद आ जाता मगर निशाने पर
तमाशा न बनाए तेरी तदबीर का
कल न था, आज भी भरोसा नहीं मुझे ज़माने पर
‘इश्क’ की क्या मजाल बने तेरी रुसवाई की वजह
चाहे तमाम इलज़ाम आये तेरे दीवाने पर
तेरी महफ़िल के माहौल का एहसास यूँ हुआ
आँखों म़े इशारे हुए मेरे आने पर
ishQ
15th Oct 2011
Friday, September 23, 2011
शाम होने तक
बहुत सोचा के ख़त लिख दूं, आज शाम होने तक
नाम कर दूं सब तेरे, खुद बदनाम होने तक
तमाम उम्र न होगी बसर यूँ इंतज़ार मे तेरे
क़यामत खुद ही बुला लूं, जिस्म तमाम होने तक
साक़ी नया है, उसे कोई सबक दो मैख़ाने का
मुस्कुरा दे, "इश्क़" पे इलज़ाम होने तक
खून की सियाही बना के लिखता हूँ आखरी ख़त
शायद तू आ जाए, पूरा क़लाम होने तक
- ishQ
23rd September 2011
Sunday, July 24, 2011
तू आएगा
यूँ तो जो भी मेरा है वो तेरा हो जाएगा
पर मुझे हर चीज़ नयी देने … तू आएगा
तेरे आने की जूस्तजू, तेरे आने का इंतज़ार है
तेरे आने तक दिल कोई और आरज़ू ना कर पाएगा ... जब
तू आएगा….
ज़िन्दगी को एक नया मोड़ देने, तू आएगा
पुराना हर रास्ता ईक नया हमसफ़र पाएगा … जब
तू आएगा …
हमारी अब तक मुलाक़ात हुई नहीं मगर
क्या कोई इत्तेफाक होगा जब तू मुझे पहचान जाएगा
तू मुस्कुराएगे, मैं रोऊंगा … जब
तू आएगा …