Saturday, December 31, 2011

इक



इक  तरफ  जिद्द  है  उसके  बगैर  जिया  नहीं  जाता 
पर  इक  अनकही  हद्द  को  पार  किया  नहीं  जाता 

जिस  बात  पे  सांस  रुके  और  दम  निकल  जाए 
इक  हकीकत  है  जिसे  करार-ए-ख्वाब दिया  नहीं  जाता 

हवाओं  मे  ख़लिश  उठी  है  कोई  पोशीदा 
जाने  क्यों  इक  नाम  अब  हमसे  लिया  नहीं  जाता 

साकी, पयमाना या  जाम  किसी को तो हुई है रंजिश मुझसे
अब  इक भी  घूँट  हमसे  पीया  नहीं  जाता 

जिस्म  और  रूह  मे  येही  इक  फर्क  देखा  है 
"इश्क" का  ज़ख्म  होता  है  जो  सिया  नहीं  जाता 


 - ishQ

01.01.2012


Sunday, December 11, 2011

बेपरवाह रफ़्तार



आएगी  खबर  उसकी  इस  इंतज़ार  मे  हैं  हम 
उसकी  याद, उसके  सुरूर, उसके  प्यार  मे  हैं  हम 


हर  आहट पे  आँखें  दौड़ती  हैं, सांस  रुक  जाती  है 
इक  पल  वीराना और  कभी   महफ़िल-ऐ-बहार   मे   हैं   हम


दिल अपनी   धुन  मे, दिमाग    बेख़ौफ़    उढ़  रहा  है 
बे-काबू   जिस्म-ऐ-आरज़ू  के   ख़ुमार  मे  है  हम 


रोके   है  बद-तम्मना   और   बांधे  है   रस्म-ओ-दुनिया
र   “इश्क”  बेफ़िक्र  और  बेपरवाह  रफ़्तार   मे  है   हम 


ishQ

11th December 2011


Monday, December 05, 2011

नए फ़साने




न चाहते हुए भी गर किसी महफ़िल जाते हैं
उसके ज़िक्र पे मुस्कुरा के हम बिस्मिल जाते हैं


इक उसके दीद की आरज़ू होती है जब कभी
साथ हज़ारों तमन्ना-ओ-एहसास हो शामिल जाते हैं


जब सबके पास इक दिल है महसूस करने को
सब न जाने क्यों किये अफ़सोस-ए-दिल जाते हैं



मिलता हैं मुझसे बरसों की पहचान हो जैसे
उसके असरार-ए-वाकिफ़ से नए फ़साने मिल जाते हैं


करना है इज़हार-ए-दिल कितना कुछ उससे मगर
नज़र मिलती है ”इश्क“ से और लब सिल जाते हैं





बिस्मिल = sacrifice / lover's bait

असरार-ए-वाकिफ़ = mysterious introduction



ishQ

7th December 2011

Saturday, December 03, 2011

सोच थकती नहीं



इक  हसरत  है  जो  रूकती  नहीं 
चलती  दिल  पे  कोई  सख्ती  नहीं 

जिस्म   और  आँखें  टूट  जाए  मगर 
ज़हन  मे  तेरी  सोच  थकती  नहीं 

इक  हलकी  सी  ठोकर  और  चोट  हरा  उधर 
इधर सौ  दुआएं  जान  को  लगती  नहीं 

”इश्क” लाख  कोशिश  कर  लो  महफ़िल  मे 
मुस्कराहट  आँखों  की  शरारत  ढकती  नहीं 

Wednesday, November 16, 2011

तितली



पाया उसे  पर  देखा  नहीं  कभी 
शायद  कुछ  दूरी  बाकी  है  अभी 

वो  जो  अपना  है , पर  इक  सपना  है 
कहानी  आधी  पूरी  बाकी  है  अभी 

मायूसी  के  नशे  मे  न  उठ  के  जा  “इश्क”
जाम  लिए  आता  साक़ी  है  अभी 

तितली  उढ़  के  बैठी  गुल  पे  जैसे  होठों  पे  होठ 
कुछ  इस  तरह  तस्वीर  आंकी  है  अभी 


 - ishQ

16th November 2011

Friday, November 11, 2011

इल्म--ए-इश्क



खुशबू  सुलग  उठे हवाओं म़े वो  जब आये 
उसका नाम  लेते  ही  मुस्कराहट  बेसबब आये 

दिन  गुज़र  जाता  है   दुनियादारी  म़े 
कमबख्त न  जाने  क्यों  हर  रोज़  यह  शब्  आये 

चाहने वालों  की  नज़रों  ने  सिखा  दिया  उन्हें  नाज़-ओ-अदा 
उनकी  इक  नज़र  से    हमे  काएदा-ओ-अदब  आये 

सब्र  की  हद्द  तक  आ  गया  हूँ  मैं 
उसको  इल्म--ए-इश्क  न  जाने  कब  आये 


ishQ

11.11.11


Sunday, November 06, 2011

गलत फ़हमी



हर  हमसफ़र  सनम  नहीं  होता 
हर दर्द  की  वजह  ग़म  नहीं  होता 


इसी गलत  फ़हमी  में  जी  गए  ज़िन्दगी 
कुछ  भी  ज्यादा  या  कम  नहीं  होता 


कुछ  शक्स  सब  कह  देते  हैं  ख़ामोशी  से 
उनम़े  लफ्ज़-ओ-दम  नहीं  होता 


जैसे  कुछ  जज़्बों  का  कोई  सबब  नहीं  होता 
कुछ  ज़ख्मो  का  मरहम  नहीं  होता 


 - ishQ

6th November 2011

Saturday, November 05, 2011

ज़िद


नयी मुलाक़ात , मुद्दा पुराना

इक लफ्ज़ के सौ मतलब बन जाना


मेरा जूनून, मेरी तड़प, मेरी तिशनगी

उसकी झलक, उसकी नज़र, उसका मुस्कुराना


गर मुमकिन हो तो ही वादा करो सनम

अंजाम न पहुंचे , उसे कहते हैं फ़साना



आरज़ू -ए -इश्क की हद देखिये

जैसे किसी आदत का ज़िद बन जाना


- इश्क


5th November 2011



Wednesday, October 19, 2011

वो


कल तक सपनों मे आती थी

आज मेरी गोद मे लेटी है

दुनिया मे सबसे अनोखी

वो, मेरी बेटी है


कुछ ही दिन हुए वो घर आई

रिश्ता लेकिन है लगता सालों का

लाजवाब, एक ही जवाब है

वो, मेरे सारे सवालो का


अजब उसका खेल

अजब चाल सलोना है

दिन भर उसको सोना

और रात भर उसको रोना है


य़ू तो अब तक कभी कहीं

पूरा एक लफ्ज़ कह पाई है

आँख भर आती है मगर जब

वो, मेरी गोद मे मुस्कुराई है


आज ही हमे लगता है

कब ये बच्ची बड़ी होगी

पहले घुटनों के बल और फिर

अपने पैरों पे खड़ी होगी


बेवजह नहीं है ये

जो मैं इतना खुश दिख रहा हूँ

वो, मुझसे इक नया रिश्ता जता रहा है

मैं बस अपनी आप बीती लिख रहा हूँ


उसके गोद म़े आते ही मैंने

हर ख़ुशी सीने म़े समेटी है

सबसे अलग, सबसे अनोखी

वो, मेरी बेटी है


- ishQ

20th October 2011

Saturday, October 15, 2011

निशाना


मैं तो जाता तेरे बुलाने पर

तू खुद जाता मगर निशाने पर


तमाशा बनाए तेरी तदबीर का

कल था, आज भी भरोसा नहीं मुझे ज़माने पर


इश्ककी क्या मजाल बने तेरी रुसवाई की वजह

चाहे तमाम इलज़ाम आये तेरे दीवाने पर


तेरी महफ़िल के माहौल का एहसास यूँ हुआ

आँखों म़े इशारे हुए मेरे आने पर


ishQ

15th Oct 2011


Friday, September 23, 2011

शाम होने तक


बहुत सोचा के ख़त लिख दूं, आज शाम होने तक

नाम कर दूं सब तेरे, खुद बदनाम होने तक


तमाम उम्र न होगी बसर यूँ इंतज़ार मे तेरे

क़यामत खुद ही बुला लूं, जिस्म तमाम होने तक


साक़ी नया है, उसे कोई सबक दो मैख़ाने का

मुस्कुरा दे, "इश्क़" पे इलज़ाम होने तक


खून की सियाही बना के लिखता हूँ आखरी ख़त

शायद तू आ जाए, पूरा क़लाम होने तक



- ishQ


23rd September 2011

Sunday, July 24, 2011

तू आएगा


यूँ तो जो भी मेरा है वो तेरा हो जाएगा

पर मुझे हर चीज़ नयी देने … तू आएगा


तेरे आने की जूस्तजू, तेरे आने का इंतज़ार है

तेरे आने तक दिल कोई और आरज़ू ना कर पाएगा ... जब

तू आएगा….


ज़िन्दगी को एक नया मोड़ देने, तू आएगा

पुराना हर रास्ता ईक नया हमसफ़र पाएगा … जब

तू आएगा …


हमारी अब तक मुलाक़ात हुई नहीं मगर

क्या कोई इत्तेफाक होगा जब तू मुझे पहचान जाएगा

तू मुस्कुराएगे, मैं रोऊंगा … जब

तू आएगा …