Wednesday, July 31, 2013

चाहत

दिल है आज खुले आसमान मे उड़ता परिंदा कोई,
फिर एक चाहत हुई है इसमे ज़िंदा कोई

कुछ ऐसी कढ़की है आज बिजली बादलों मे,
खुदा से लड़ने निकला है फिर बंदा कोई

सुर्ख आँखें, बेचैन साँसें, होंठों पे आह,
मेरे सनम की गली का ही है बाशिंदा कोई

आज वो हरक़त हो गयी है तुमसे इश्क़,

तुम पे एतबार ना करेगा आईंदा कोई

Friday, July 12, 2013

बेफ़िज़ूल

खुद से ही नक़ाब कर रखा है,
कैसा माहोल जनाब कर रखा है

अश्क-ओ-खूं की सियाही से लिख के,
ज़िंदगी को गीले पन्नों की किताब कर रखा है

हवाओं मे इक अजीब ताब है आज कल,
साँस लेना भी अज़ाब कर रखा है

मौसम बेवजह नहीं बदलता, इश्क़ तुमने
बेफ़िज़ूल, मिजाज़ खराब कर रखा है

Monday, July 08, 2013

जीत

कुछ तुम्हारी ख़ता, थोड़ी हमारी कमज़ोरी थी
हम नज़दीक ना आए, रखी तुमने भी दूरी थी

नज़र मिली, हाथ सरके, होठ भी हिले
लफ्ज़ आधे रहे मगर तमन्ना पूरी थी

सारी शाम गुज़र गयी एक पल मे
रुख्सत के पल तक मुलाक़ात अधूरी थी

देखा किए उन्हे, कुछ भी कहे बगेर
दिल की बात लबों तक ला के छोढ़ी थी

बहस हुई बड़ी देर तलक, दिल और दिमाग़ मे
इश्क़ या हक़ीक़त, एक की जीत ज़रूरी थी


Thursday, July 04, 2013

रात वहीं रुकी हुई है



शाम थक के जा चुकी है
हवा जुगनूओं को भी सुला चुकी है
हर फूल अपना मुखड़ा गा चुकी है
रात वहीं रुकी हुई है

चाँद वक़्त पे रुख्सत हो गया
ओस भी सारे पत्तों को धो गया
होठ मुस्कुराए, दिल रो गया
रात वहीं रुकी हुई है

मैं सोचती हूँ, कुछ कहूँ भी तो किस से?
रात का कौन सा आधा है मेरे हिस्से?
जो रात बीत गयी, और मुझसे जीत गयी
या जितनी रात बाकी है, और मेरे साथ रहने के लिए हाँ की है

जी भर के हँसने का मन था
जी भर के रोने की थी आरज़ू
शायद, इसी रात का इंतेज़ार था मुझे
अकेले बैठे, खुद से हो गुफ्तगू
कोई तो वजह होगी, के रात गुज़रती ना थी
कोई सोच, शायद, उसके ज़हेन से उतरती ना थी
अकेली, कुछ सर्द, कुछ सियाहरात वहीं रुकी हुई थी

रुकी हूँ मैं बीच राह मे
खड़ी हूँ अपने हमसफर की चाह मे
इंतेज़ार है के कोई मेरा नाम ले
साथ दे और मेरा हाथ थाम ले
ऐसा मिलन, जो सारे फ़ासले दूर कर दे

सूरज आए जब तो, ज़िंदगी मे नूर कर दे

Tuesday, July 02, 2013

वेहम

धड़कनो की रफ़्तार का इज़ाफ़ा दे गया
मेरा सनम आज एक लिफ़ाफ़ा दे गया

खत पढ़ के कुछ यूँ हुआ वेहम
जैसे दुआ पूरी होने की दुआ दे गया

पहली नज़र को गुस्ताख़ी का नाम दे के
इंतेज़ार नाम का एक सज़ा दे गया

अंजान हो के भी यूँ देखा किया मुझे

उम्मीद मुझे हर दफ़ा दे गया

परदा नशीन

जो हद्द से बढ़ के हसीन होते हैं
वो अक्सर परदा नशीन होते हैं

सूरत जितनी मासूम हो सनम की
शक़सियत से उतने ही रंगीन होते हैं

वो एक पल, जब सारे पल बे-मतलब हो जाए
ऐसे पल बेहतरीन होते हैं

कितना भी नमकीन हो पानी समंदर का

रेत पे, पेरॉं के निशान शिरीन होते हैं