नींद कच्ची और ख्वाब काँच के
दीदार आधा और हिजाब काँच के
आखें खुली हो या बंद हो पलकें
तुम ही दिखते हो जैसे हो बाब काँच के
तेरी आहट सुन के, धड़कन रुक गयी
छनक उठे दिल के असबाब काँच के
रात भर बिस्तर की सिलवटों मे चुभते रहे
सवाल काँच के और जवाब काँच के
जिस शाम हुस्न की टक्कर हुई ‘इश्क ’ से
टूट के चकनाचूर हुए मेरे जनाब काँच के
ishQ
20th March 2012
1 comment:
Good one !
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