तुम तक पहुँचने की कोई राह तो होगी
साथ मिले न मिले तेरी पनाह तो होगी
बरसो तलक मुलाक़ात हो न सही
जब भी मिलेंगे वही चाह तो होगी
दिल के ज़ख्म न दिखते हैं न दिखाता है कोई
बदन छूते ही निकलती आह तो होगी
यह तो कुदरत का घूमता आईना है ‘इश्क’
उजाले का मजमा फिर तनहा रात सियाह तो होगी
ishQ
28th April 2012