उठी रगों मे आज फिर कैसी रफ़्तार है
खुद लहू बन गयी काटती तलवार है
होठों पे इक मुख़्तसर सी मुस्कान आती है नज़र
और आँखों मे रुका हुआ अश्क-ए -इसरार है
यूँ फिर आने का कोई तो सबब होगा ज़रूर
तुझे हो न हो तेरे जाने का मुझे शुमार है
ज़बा पे आ के रुकी इक बात फिर कोई आज
इश्क अपने माजी का खुद ही इश्तिहार है
ishQ
July 2012
No comments:
Post a Comment