उनकी हर अदा हमारा इम्तिहान है
उसकी यादों मे सुकून है मगर
इज़तेराब की लहरों मे दिल हैरान है
बे-फ़िकरी का आलम छाया है इस कदर
होने को कोई ख़ता बड़ी नादान है
कितना रोकूँ सोच की दौड़ को
धोका देता हुआ दिल शैतान है
इब्तेदा हुई है जिस सफ़र की हमसफ़र
देखो क्या इन्तेहाँ-ए-दास्तान है
होश गुम, आँखें खुली, सांसे बे-परवाह
‘इश्क’ की शुरुआत की ये ही पहचान है
ishQ
25th March 2012
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