Monday, October 29, 2012

किरदार




खुलते   बंद  होते   ऐसे   मेरे  अबसार   है  
जैसे  उसकी   रुख-ए-रौशनी   खुर्शीद   पे   सवार     है  

खामोश   मुस्कुराट   लिए   सुलझाना   वो   ज़ोलीदा   जुल्फें  
पर   बोलती   आँखें   खोलती   सारे   असरार   हैं  

ये   जो   छायी   है   खुमार-ए-परस्तिश   मुझ   पे  
इसकी   हालत   का   दिल   खुद   ही    गुनाहगार   है  

पल  पल   बदलता   है   मौसम   उसके   इशारे   पे  
हर   आहट   पे   बदलता   धड़कनों   का   शुमार   है 

ताल्लुक़   हो   रहा   है   इक   नए   खुद   से   आज   कल 
“इश्क” ने  खुद  ही  बदला   अपना   किरदार   है 



- ishQ
29th October 2012

अबसार - Eyes
खुर्शीद  - Sun
ज़ोलीदा - Entangled
खुमार-ए-परस्तिश - lost in worship
शुमार - count

Thursday, October 25, 2012

फिर इक बार रोका दिल को हमने




इक   उम्र   हो   गयी   थी  उनको  देखे  हुए 
इक  नज़र  पड़ी  और  फिर  इक  हूक  सी  उठी 
वक़्त  गुज़र  गया  था  पर  वो  लम्हा  रुका  सा  था 
फिर  इक  बार   रोका  दिल  को  हमने 

महफ़िल  मे  नज़र   बचाते  हुए 
अचानक  नज़र  मिली  दुर्र  जाते  हुए 
जाने  पहले  कौन  मुस्कुराया 
फिर  इक  बार   रोका  दिल  को  हमने 

दो  कदम  वो  चले  उस  तरफ 
कुछ  फासले  कम   हुए  इस  तरफ 
अलफ़ाज़  लबों  पे  आने  को  थे 
फिर  इक  बार   रोका  दिल  को  हमने 

अब  कहूं, तब  कहूं 
क्या  कहूं  जब  कहूं 
आँखें  सुना  रही  थी   “इश्क” की  दास्तान 
फिर  इक  बार   रोका  दिल  को  हमने 

दिल  ने  कहा  न  जा  और  करीब  अब 
दिल  ने  कहा  लगा  कोई  तरकीब  अब 
दिल  ने  कहा  अब  न  रुक  पाएगा 
फिर  इक  बार   रोका  दिल  को  हमने 


ishQ26th October 2012

Tuesday, October 16, 2012

कोई और ऐसा और कहाँ है




मैंने उसे  कभी  देखा  ही  नहीं  तस्सली  से 
उसकी  अब  उम्र  हो  चली  है  शायद....

रात  मैं  सो  गया  तो  भी  जगी  रहती  थी 
और  भागता  हुआ  ही  पाया  सुबह  आँखें  जो  मैंने  खोली  है....

हर दिन, वक़्त  कम  है इसलिए  खुद  भूखी   रह  के 
घर  पे  तैयार बाकी सबका  खाना  किया 
अपने मैले कपड़ो  को बेपरवाह किये 
हर एक को नए कपड़ो मे रवाना किया

जब हर किसी ने मना कर दिया
तब आखिर मे उसकी साड़ी के कोने से रुपये निकले
और मेरी हथेली मे देते हुए हर बार कहा 
ये  आखरी  बार  है.....

उसका चेहरा आज तक बदला नहीं, वैसी  ही  दिखती  है  जैसी  मुझे  हमेशा  से  याद  है
इसलिए कभी लगा ही नहीं, के  दरअसल वो  अब  कमज़ोर सी  हो  गयी  है 
अब  वो  भाग नहीं  पाती.....
आँखों  पे  चश्मा  लग  गया  है, आवाज़  हलकी  हो  उठी  है
अब वो रात भर जाग नहीं पाती....

हाल  ही  में  मैंने  उससे  कहा भी, "माँ, अब  तो  थोड़ा  आराम  कर  लो"
तो  वो  बोली, "माँ हूँ; तुम लोगों को आराम करते देख मुझे आराम मिलता है"
बोली, आज कल थोड़ा जल्दी थक ज़रूर जाती हूँ
पर मैं जानती हूँ, मेरे बच्चे मुझे संभाल लेंगे

सच तो ये है के आज तक वो मुझे संभाल रही है
आज तक मुझे बच्चे की तरह ही पाल रही है

कोई और ऐसा और कहाँ है
मेरी दुनिया का दूसरा नाम ही माँ है

ishQ
16th Oct 2012

Sunday, October 07, 2012

मुद्दतों तक




यूँ तो गुफ्तगू होती रही मुद्दतों तक
उनकी जुस्तजू होती रही मुद्दतों तक

मिलते भी रहे, बातें भी हुई, हंस के हाथ थामा भी था शायद 
कुछ भी न हुआ, आरज़ू होती रही मुद्दतों तक

तितलियाँ बैठी रहीं, परों के रंग उड़ गए हवाओं में
रुमाल मिला उनका, खुशबू होती रही मुद्दतों तक 

ज़िक्र आया था इक रकीब का आखरी मुलाक़ात में
हालात-ए-दिल काबू होती रही मुद्दतों तक


ishQ
8th October 2012

Friday, October 05, 2012

फैसला रुक गया


‎-

उधर चलते चलते वो काफिला रुक गया
इधर बेचारा दिल अकेला रुक गया

वो जाते जाते मुस्कुरा गया इस तरह
उस से होते होते गिला रुक गया

जब से किसी को मनाना शुरू किया है
दुनिया से रूठे रहने का सिलसिला रुक गया

मैं अनजाने न जाने क्या कह गया
और 'इश्क' होने का फैसला रुक गया

ish-Q
6th Oct 2012