खुलते बंद होते ऐसे मेरे अबसार है
जैसे उसकी रुख-ए-रौशनी खुर्शीद पे सवार है
खामोश मुस्कुराट लिए सुलझाना वो ज़ोलीदा जुल्फें
पर बोलती आँखें खोलती सारे असरार हैं
ये जो छायी है खुमार-ए-परस्तिश मुझ पे
इसकी हालत का दिल खुद ही गुनाहगार है
पल पल बदलता है मौसम उसके इशारे पे
हर आहट पे बदलता धड़कनों का शुमार है
ताल्लुक़ हो रहा है इक नए खुद से आज कल
“इश्क” ने खुद ही बदला अपना किरदार है
- ishQ
29th October 2012
अबसार - Eyes
खुर्शीद - Sun
ज़ोलीदा - Entangled
खुमार-ए-परस्तिश - lost in worship
शुमार - count