Tuesday, March 06, 2012

गुबार


 होठों पे आज कल इक सवाल आता है
आँखों मे बे-रंग सा गुलाल आता है


दर्द की हद्द को इतना पीछे छोड़ आए हैं
न गिला किसी से न दिल मे कोई मलाल आता है


जिस वक़्त ज़हन मे दुनिया का रिवाज़-ओ-हाल आता है
उस वक़्त मुझे बस तेरा ख़याल आता है


दिन और रात की दूरी यूँ सिमट गयी है ‘इश्क’
ख्वाब खुद नींद से अपना गुबार निकाल आता है


ishQ

7th March 2012

2 comments:

anonymous said...

Tremendous , really liked it :)

anonymous said...

Tremendous , really liked it :)