Tuesday, November 27, 2012

"महफ़िल-ए-ना-मंज़ूर"



जब भी पूछा  गया, वही  ठिकाना ही रहा 
सुरूर हो न हो, गुरूर-ए-मैखाना ही रहा 

कोई भी हो, अनजान चेहरा या माज़ी का मिराज 
जिस से भी मिले मिजाज़ आशिकाना ही रहा 

हाँ  ये सच है के अब हम साथ नहीं 
पर हम मिले भी थे, ये अफसाना ही रहा 

कुछ तो चाहिए महफ़िल-ए-ना-मंज़ूर का सबब 
हर बार की तरह इस शाम भी तेरा बहाना ही रहा 

उम्र भर "इश्क़"  की बातों का भरोसा न किया
हर इक बात पे कसमों का खाना ही रहा 


ishQ
28th November 2012

Friday, November 16, 2012

मुझसे पूछो मैं खुश क्यों हूँ?



मुझसे पूछो मैं खुश क्यों हूँ?

मैं खुश हूँ क्योंकि मुझे पता है मुझे क्या खुश कर सकता है 
मैं खुश हूँ क्योंकि मुझे पता है ख़ुशी क्या है 
मैं खुश हूँ क्योंकि मुझे मेरा दायरा मालूम है 
मैं खुश हूँ क्योंकि सुकून ही मेरा जूनून है 

मुझे ख़ुशी ढूढनी  नहीं पड़ती 
मुझे ख़ुशी खोने का डर नहीं 
कभी किसी दिन अकेला पड़ भी जाऊं
मायूस होता मैं मगर नहीं 

मैं कभी इतनी तेज़ नहीं भागता 
की ख़ुशी पीछे छूट जाए 
कभी ऐसा न हो 
खुद अपनी सोच रूठ जाए 
मैं हूँ, मेरा वजूद है, मेरी सोच है 
ख़ुशी मुझे ढूंढती है, ये मेरी खोज है 

मुझसे पूछो मैं खुश क्यों हूँ?

मैं खुश हूँ क्योंकि  मैं सोच सकता हूँ 
मैं खुश हूँ क्योंकि मैं खुद से पूछ सकता हूँ 
मैं खुश हूँ क्योंकि  मैं खुद को रोक सकता हूँ 
मैं खुश हूँ क्योंकि मैं खुश रह सकता हूँ 

मैं ख़ुशी तोलता  नहीं, मैं ख़ुशी नापता नहीं 
मैं दूसरों की थोड़ा  सुनता हूँ और उससे भी कम कहता हूँ 
मुझे दुसरे की ख़ुशी का गम नहीं
इसलिए शायद थोड़ा  ज़्यादा   खुश रहता हूँ 


Friday, November 09, 2012

अच्छा नहीं लगता




कोई बात हो, झूठा या सच्चा नहीं लगता
पर जब कोई बात न हो, तो अच्छा नहीं लगता 


सुकून -ऐ-राह, खूबसूरत वादियाँ
पर उसका साथ न हो, तो अच्छा नहीं लगता

बादल गरजे, दिल तडपे, अरमाँ भीग उठे
उसके बाद बरसात न हो, तो अच्छा नहीं लगता

दिन भर की भीढ़ के बाद शाम का सन्नाटा
और हाथों मे हाथ न हो, तो अच्छा नहीं लगता

सारे रिश्ते छोड़ के, सारे एहसास भूल कर भी अगर
'इश्क' से मुलाक़ात न हो, तो अच्छा नहीं लगता


ishQ


9th November 2012

Friday, November 02, 2012

भूल पाता नहीं है





यूँ   तो   वो   कुछ   बताता   नहीं   है  
पर   चाह   के   वो   छुपाता   नहीं   है  


ऐसा   नहीं   है  के   हम   मिलते   नहीं   अब  
पर   अब   वो    आँखें   मिलाता   नहीं   है  


दिन   की   रौशनी   मे   ख्वाब   अब   आते   नहीं   है  
वरना   इक   रात   न   गुज़री   जब   वो   सताता   नहीं   है  


कई  दिन   हुए   मैं    किसी   से   रूठा   नहीं   हूँ 
कई   दिनों   से  मुझे   कोई   मनाता   नहीं   है  


याद   नहीं   कितने   अरसे   हुए   उसके   रुख्सत   को 
पर   वो  हादसा   "इश्क"   भूल   पाता   नहीं   है 


ishQ
2nd November 2012