Friday, June 15, 2012

मेरा कल






सुबह की पहली किरण ने सहलाया मुझे 
पहाड़ों की ओस-सिली पख्दंदियों ने बुलाया मुझे 
सर्दियां दस्तक दे कर दरवाज़े पे संभल रही थी 
सूर्ख ठंडी हवा मेरे साथ चल रही थी


कुदरत की इतनी ज़ीनत है के चुभता है दिल 
पर अब यहाँ रुकना है मुश्किल 
कुछ इकरार करने थे, कुछ काम थे बाकी 
पर सूख गयी सुराही, रूठ गया मेरा साकी 


कशमकश है आज सर्द हवा और माजी की बारिश मे 
इजाज़त नहीं मुझे रोने की भी इस दिल की साजिश मे


दिल के किसी कोने मे ही रहने दिये सारे ज़ख्म 
सूखने छोड़ दिये हैं पुराने आब-ए-चश्म 
निकल आया हूँ उस दर्द की दलदल से 
आज मुलाक़ात होगी मेरी मेरे नए कल से


ishQ

Monday, June 11, 2012

इश्क्ज़ादे



हमको सुकून, तुमको यकीन आया नहीं 
तुमने पूछा नहीं, हमने बताया नहीं 


किसी को हमसे शिकायत है आज कल 
न जाने क्यों कोई दावा उठाया नहीं ?


उनको फुर्सत है ज़माने भर से गुफ्तगू की 
बस हमारा ही ख़याल आया नहीं 


साक़ी को गिला रहा हमने उठा लिया पैमाना 
हमे रंजिश रही उसने पिलाया नहीं 


इतने भी नादान नहीं तुम, 'इश्क्ज़ादे" 
पर न वो समझे, और तुमने भी समझाया नहीं




ishQ


11th June 2012