सुबह की पहली किरण ने सहलाया मुझे
पहाड़ों की ओस-सिली पख्दंदियों ने बुलाया मुझे
सर्दियां दस्तक दे कर दरवाज़े पे संभल रही थी
सूर्ख ठंडी हवा मेरे साथ चल रही थी
कुदरत की इतनी ज़ीनत है के चुभता है दिल
पर अब यहाँ रुकना है मुश्किल
कुछ इकरार करने थे, कुछ काम थे बाकी
पर सूख गयी सुराही, रूठ गया मेरा साकी
कशमकश है आज सर्द हवा और माजी की बारिश मे
इजाज़त नहीं मुझे रोने की भी इस दिल की साजिश मे
दिल के किसी कोने मे ही रहने दिये सारे ज़ख्म
सूखने छोड़ दिये हैं पुराने आब-ए-चश्म
निकल आया हूँ उस दर्द की दलदल से
आज मुलाक़ात होगी मेरी मेरे नए कल से
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