आँखों की जो हरक़त हो
गयी है
मासूम दिल की मुसीबत
हो गयी है
उसका एक ख़याल इस भीड़
मे आया
हमे दुनियादारी से फ़ुर्सत
हो गयी है
वो मुस्कुरा के जो इनकार
कर भी गया
ये रुसवाई हमारी शोहरत
हो गयी है
जश्न-ओ-मीना-ए-महफ़िल
की आदत छूट गयी
हमे तन्हाई-ओ-खामोशी
से मोहब्बत हो गयी है
कुछ फ़ासले हैं जो तय
करने हैं इश्क़
ना-मुमकिन सी अब ये
फुरक़त हो गयी है
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