जो दुआ मे माँगी थी तक़दीर की तरह
बाँध गयी मुझे ज़ंजीर की तरह
बेनज़ीर होने का इक ये भी तरीका है
घुल जाओ ज़हेन मे रंग-ए-तस्वीर की तरह
लफ़्ज़ों पे क़ाबू रखना है मुनासिब
लड़कपन मे चुभ जाते है तीर की तरह
साथी ना बन सका मेरा कभी मगर
वो साथ ही रहा मेरे ज़हीर की तरह
कहीं एहसास नही हैं, कभी अल्फ़ाज़ गुम
पुराने काग़ज़ पे किसी अधूरे तदबीर की तरह
मासूमियत और बे-फ़िक्री मे थोड़ा फ़र्क है
होश को संभालो अपने ज़मीर की तरह
- ishQ
20th June 2013
No comments:
Post a Comment