कोई ज़िंदगी मे आया है बहार ले के
इनकार की सरहद पे इज़हार ले के
ना गहराई का इल्म है, ना दरमियाँ का अंदाज़ा
दिल का क्या करूँ जो चला है दरिया पार ले
के
उस दिन हुआ असर सुरूर-ए-मैखाने का
साक़ी जब आया आँखों मे ख़ुमार ले के
सर्द हवा, प्यासी नज़र, टूटे बोल
जा रहे हैं मेरी इलतेजा बार बार ले के
एक वो हैं जो छुपा रहे हैं उल्फ़त
एक हम हैं खड़े चेहरे पे इश्क़ का इशतहार
ले के
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