कुछ यूँ सताया है उस शक़्स ने
भूला एहसास जगाया है उस शक़्स ने
जब उंगलियाँ उठ रही थी हम पे
हाथ बढ़ाया है उस शक़्स ने
हम आस लगाए बैठे थ अंधेरे मे
सहेर को बुलाया है उस शक़्स ने
इक नया दर्द मिला है उसके मिलते ही
इक पुराना ज़ख़्म बुझाया है उस शक़्स ने
महफ़िल मे बचते बचाते ज़माने से
इश्क़ से मिलाया है उस शक़्स ने
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