Tuesday, June 18, 2013

परदा

खुद से परदा बार बार करते हो
क्यों नही खुद पे एतबार करते हो?

तुम्हे भी इल्म है ज़िंदगी का
क्यों हक़ीक़त से बँध अबसार करते हो?

खुद को सज़ा दे के क्या मिलेगा तुम्हे?
किस मक़सद से खुद पे वार करते हो?

महफ़िल सजी है मिलने मिलाने को
ये क्या पिंजरा तेयार करते हो?

खुद से बातें करना अच्छी बात है
पर यूँ नही जैसे तुम ना-गवार करते हो

हथेली थाम लो खुशी का दौड़ के

क्या झिझक है, क्यों इंतेज़ार करते हो?

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