जाने क्यों वो मुझपे
यकीन कर रहा है
अंजाने ही मगर मेरी
हस्ती शिरीन कर रहा है
वो मासूम आँखें, वो हसीन चेहरा
दानीस्ता दिल एक गुस्ताख़ी
हसीन कर रहा है
कुछ भी कहा नही है और
दिल का ये आलम है
ख़ामाखा मौसम-ओ-मिज़ाज
रंगीन कर रहा है
बिना मेरी इजाज़त, बड़े मुयस्सर अदाओं से
मेरी ज़िंदगी मे दाखिल
इक माह-जबीन कर रहा है
चाहत को जुनून, उसकी तिश्नगी को सुकून
दिल इश्क़ को अपना ईमान-ओ-दीन
कर रहा है
No comments:
Post a Comment