Monday, June 17, 2013

यकीन



जाने क्यों वो मुझपे यकीन कर रहा है
अंजाने ही मगर मेरी हस्ती शिरीन कर रहा है

वो मासूम आँखें, वो हसीन चेहरा
दानीस्ता दिल एक गुस्ताख़ी हसीन कर रहा है

कुछ भी कहा नही है और दिल का ये आलम है
ख़ामाखा मौसम-ओ-मिज़ाज रंगीन कर रहा है

बिना मेरी इजाज़त, बड़े मुयस्सर अदाओं से
मेरी ज़िंदगी मे दाखिल इक माह-जबीन कर रहा है

चाहत को जुनून, उसकी तिश्नगी को सुकून
दिल इश्क़ को अपना ईमान-ओ-दीन कर रहा है

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