Wednesday, June 26, 2013

थोड़ी खिड़की खोलो

थोड़ी खिड़की खोलो, हवा आने दो
रुआसा दिन है, निकल जाने दो

दो दिन का सुरूर कुछ रोज़ ही रहता है
बरसों की तिश्नगी को सवर जाने दो

सफ़र मे शुरू हुई चिंगारी से जो
इस चाहत की आग मे जल जाने दो

बारिश का मौसम आएगा जाएगा
दिल के दरिया को भर जाने दो

तुम्हारे इकरार पे जान अटकी है

एक साँस लेने दो, मार जाने दो

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