Saturday, November 05, 2011

ज़िद


नयी मुलाक़ात , मुद्दा पुराना

इक लफ्ज़ के सौ मतलब बन जाना


मेरा जूनून, मेरी तड़प, मेरी तिशनगी

उसकी झलक, उसकी नज़र, उसका मुस्कुराना


गर मुमकिन हो तो ही वादा करो सनम

अंजाम न पहुंचे , उसे कहते हैं फ़साना



आरज़ू -ए -इश्क की हद देखिये

जैसे किसी आदत का ज़िद बन जाना


- इश्क


5th November 2011



2 comments:

Sayani Mitra said...

nice work..:)
short and nice and fulfilling thoughts...

Shipra said...

Amazing thoughts...nicey....:)