न चाहते हुए भी गर किसी महफ़िल जाते हैं
उसके ज़िक्र पे मुस्कुरा के हम बिस्मिल जाते हैं
इक उसके दीद की आरज़ू होती है जब कभी
साथ हज़ारों तमन्ना-ओ-एहसास हो शामिल जाते हैं
जब सबके पास इक दिल है महसूस करने को
सब न जाने क्यों किये अफ़सोस-ए-दिल जाते हैं
मिलता हैं मुझसे बरसों की पहचान हो जैसे
उसके असरार-ए-वाकिफ़ से नए फ़साने मिल जाते हैं
करना है इज़हार-ए-दिल कितना कुछ उससे मगर
नज़र मिलती है ”इश्क“ से और लब सिल जाते हैं
बिस्मिल = sacrifice / lover's bait
असरार-ए-वाकिफ़ = mysterious introduction
ishQ
7th December 2011
2 comments:
Are kuch Bangla mein bhi likho .
Super lykeee :)
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