Saturday, December 31, 2011

इक



इक  तरफ  जिद्द  है  उसके  बगैर  जिया  नहीं  जाता 
पर  इक  अनकही  हद्द  को  पार  किया  नहीं  जाता 

जिस  बात  पे  सांस  रुके  और  दम  निकल  जाए 
इक  हकीकत  है  जिसे  करार-ए-ख्वाब दिया  नहीं  जाता 

हवाओं  मे  ख़लिश  उठी  है  कोई  पोशीदा 
जाने  क्यों  इक  नाम  अब  हमसे  लिया  नहीं  जाता 

साकी, पयमाना या  जाम  किसी को तो हुई है रंजिश मुझसे
अब  इक भी  घूँट  हमसे  पीया  नहीं  जाता 

जिस्म  और  रूह  मे  येही  इक  फर्क  देखा  है 
"इश्क" का  ज़ख्म  होता  है  जो  सिया  नहीं  जाता 


 - ishQ

01.01.2012


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