Thursday, August 01, 2013

जब भी मिलो

आखें आँखों मे गिरफ्तार रहे, जब भी मिलो
दरमियाँ ना कोई दीवार रहे, जब भी मिलो

ता-उम्र हम मिलते रहें मगर फिर भी
इब्तिद-ए-ताल्लुक़ जैसा ही दिल बेक़रार रहे, जब भी मिलो

सुस्त बोल, हल्की छुअन, उखड़ी साँसें
उंगलियों मे धड़कनो सी रफ़्तार रहे, जब भी मिलो

इश्क़ का जुनून सवार रहे, जब भी मिलो

रुख्सत के बाद भी खुमार रहे, जब भी मिलो

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