मुद्दतों से कोई ज़ियारत नहीं हुई,
दिल मे भी कोई शरारत नहीं हुई
उमड़े कई एहसास ज़हेन-ओ-जिगर मे मगर,
जला सके जो हमे वो हरारत नहीं हुई
शुरू की थी जो बड़े एलान-ए-जश्न से,
मुक़म्मल अभी तक वो इमारत नहीं हुई
उम्र भर वो आते रहे बज़्म मे तुम्हारी, इश्क़
फिर भी उन्हे तुम्हारी आदत नहीं हुई
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