Thursday, May 23, 2013

दिल-ए-बेईमान



इक उम्र बाद बैठे मेरे मकान के कोने मे
तुम्हारा ज़िक्र आएगा मेरी दास्तान के कोने मे

पलकें उठी, दिल चल दिया हसरतों के काफिले लिए
मेरी जान अटकी रही तुम्हारी मुस्कान के कोने मे

तुम्हारे लबों की आखरी जुम्बिश की इनायत रही
इक तीखापन रह गया मेरी ज़बान के कोने मे

साल गुज़रे, मौसम बदले, दीवारों के रंग उतर गये
इक फूल खिला किया हर साल बयाबान के कोने मे

अब भी नज़र झुकती है, मुस्कराता हूँ हसीन चेहरों पे
ज़रा सा इश्क़ बाकी है शायद दिल-ए-बेईमान के कोने मे


-ishQ
23rd May 2013

No comments: